Friday 9 September 2011

जुनून हो, तो बाधाएं भी रास्ता बना देती हैं



वेलमा रुडोल्फ़ को अमेरिकन ट्रैक और फ़ील्ड एथलीट के इतिहास में असाधारण माना जाता है. बचपन में काफ़ी दुर्बल और बीमार थीं, लेकिन इन परिस्थितियों पर जल्दी ही विजय प्राप्त कर वे एक ही ओलिंपिक में तीन स्वर्ण पदक हासिल करनेवाली अमेरिका की पहली महिला बनीं.वेलमा रुडोल्फ़ का जन्म बेथलम में 1940 में हुआ था. माता-पिता की 22 संतानों में से वह 20वीं थी. जन्म से ही उसे पोलियो था.

किशोरावस्था में भयंकर रूप से निमोनिया और बुखार ने जकड़ लिया. इन सब का असर उसके पैरों पर पड़ रहा था. कुछ लोगों ने तो उसे चलने तक से मना कर दिया था. वेलमा का सौभाग्य था कि उसे एक अच्छा परिवार मिला, जिन्होंने वेलमा की हर तरह से मदद की, उसे मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध करायीं. उसे दिन में चार बार फ़िजिकल थेरेपी दी जाती थी. जब वह पांच साल की थी, तो उसके पैरों में पट्टी बांध दी गयी, जो 11 साल की उम्र तक बंधी रही. फ़िर एक रविवार उसने वह पट्टी उतार फेंकी और चर्च की ओर चल पड़ी.
जब वेलमा 13 साल की हुईं तब वे स्कूल के बास्केटबॉल और ट्रैक टीम का हिस्सा बनीं. जल्दी ही वह दौड़ने लगीं और रेस भी जीतने लगीं. उन्हें टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी के कोच ने ट्रेनिंग कैंप के लिए आमंत्रित किया. 1956 में जब वह हाइ स्कूल में थीं, तो उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में आयोजित ओलिंपिक में हिस्सा लिया. 200 मीटर रेस में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन रिले टीम में रजत पदक जीतने में कामयाब रहीं.

इसके बाद वेलमा ने खुद का ध्यान खेल पर और ज्यादा केंद्रित कर लिया. 1958 में टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और टाइगरबेल्स ट्रैक टीम का हिस्सा बनीं. 1960 में ओलंपिक ट्रायल के दौरान 200 मीटर रेस में उन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया. इसके बाद रोम में हुए ओलंपिक खेल में 100 मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने के बाद वह एक ही ओलिंपिक में तीन स्वर्ण पदक जीतनेवाली पहली अमेरिकी महिला बनीं.

इसके अगले साल उन्हें अमेरिका में हर साल एथलीटों को दिये जानेवाला शीर्ष पुरस्कार सुलिवन अवार्ड मिला. इसके अलावा 1993 में राष्ट्रपति क्‍लिंटन का पहला राष्ट्रीय खेल अवार्ड, ब्लैक स्पोर्ट्स हॉल ऑफ़ फ़ेम सहित कई अवार्डस मिले. उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी वेलमा रुडोल्फ़ ऑन ट्रैक बेस्टसेलर थी. 1977 में इस पुस्तक पर एक टेली मूवी भी बनी. 12 नवंबर 1994 को ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गयी.

उन्होंने यह साबित कर दिया कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हो, कुछ कर गुजरने का दृढ़ निश्चय अगर आपने कर लिया है, तो आपको रास्ते से कोई नहीं हटा सकता, आपकी शारीरिक अक्षमता भी नहीं. बचपन में वेलमा के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह लड़की कभी चल भी पायेगी, लेकिन खेल के प्रति अपने जुनून के कारण वह ओलंपिक में रिकॉर्ड ब्रेक करनेवाली गोल्ड मेडलिस्ट बनीं. हमारे पास तो इतना कुछ है, क्या हम अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकते?

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